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Welcome to SANT INDERJEET SINGH JI




धन धन गुरु नानक देव जी महाराज की किरपा हुई बाबा इन्द्रजीत सिंह जी पर, ये दिल्ली के रहने वाले आज से कुछ वर्ष पहले अपना कारोबार कर रहे थे। बहुत अच्हा समय बीत रहा था।समय ने ऐसी करवट ली कि इनका गुरु नानक देव जी के चरणों में ध्यान लग गया , और कारोबार छोरकर पांच साल बंद कमरे में भक्ति और गुरु नानक देव जी की आराधना में लीन रहे उन्होंने परमात्मा को एक स्वरूप जानकर पाँच साल, अखण्ड जोत जलाई 1997 में इनका रंग रूप बदल गया गुरु नानक देव जी इनकी अरदास सुनते है। अरदास के द्वारा इन्होने अनेक दुखियो का उददार किया और उन्हें गुरु घर से जोड़ा।

" जिना सासि गिरासि ना वीसरै

हरि नामा मन मत सि सेई नानका

पुरन सोई संत।" 'म:य'

आठी पहरी आठ खण्ड नावा खण्ड शरीर

तिस विसि नव निधि नाम टेक भालहि गुणी गहिरि ।। "2"

आज के बिखरे समय उलझन भरे जीवन को चलाने के लिए पैदा हो जाती है एक ऐसे माग

दशक की जो जीवन को अच्छी और साही देशा दे सके । महापुरुष ही मागॆं दिखा सकते है जिनका मन दिल, आत्मा हर पल परमात्मा मे लीन रहता हो। उनके दर्शन उनका आशीवाद, उनकी कृपा

दृष्टि उनसे नाम की दात प्राप्त हो जानी जीवन की रूप रेखा बदल देता है। उनकी तरफ से की गई अरदास कभी खाली नहीं जाती।

"पूरी होवे जनि की अरदास "

आज केवल महापुरुष ही हमें थाम कर जात-पात, ऊँच-नीच, जादू मंत्र, धागे, ताबीज से भरे समुन्द्र से निकाल सकते है। जिस वहम भ्रम ने हमें घेर रखा है, अरदास शक्ति के द्वारा मुक्त करा सकते है।

"मै विर, सचु सालाइना हु रह्स्र्दिए नाभि पंतारे ॥

महापुरुष आशीर्वाद द्वारा नाम वाणी द्वारा सिमरन द्वारा वाणी को हमारे मन मै बसा देते है।

जीवन का हर पल अरदास द्वारा वाहेगुरु से प्ररेणा लेकर हमें अमल करने के लिए कहते है लेकिन हम उसको पूरी श्रद्धा से नहीं अपनाते इसलिए भटक जाते है, और दुःख परेशानी में घिर जाते है।

"नाम बिना गति कोई ना पावै हठि निग्रहि बेवाने नानक सच घर शबद सिवाहे दुविदा महल कि जने । "

बाबा इन्द्रजीत सिंह जी भी उन महापुरुषों में से एक है जिनका जीवन गुरु बाणी नाम रस में रसा हुआ है वो हमेशा एक ही शिक्षा देते है कि रात को सोते समय परमात्मा के चरणों में अरदास किया करो जैसे की आप आप अपने माता -पिता को बोल के सोते हो कि पिता जी मुझे सुबह चार बजे जगा देना तो उस पिता की जिम्मेदारी बन जाती है सुबह उठाने की। इसी तरह अगर रात को हम उन पिता परमेशवर के चरणों में अरदास करके सोते है तो उनकी जिम्मेदारी बन जाती है उठाने की और नाम जप वाने की। हर समय वाहेगुरु का जाप किया करो। हम अपनी मर्ज़ी से जागते है खाते है सोते है और परमात्मा का नाम सिमरना भुल जाते है इसलिए दुनियावी दुःख, परेशानिया हमें घेर लेती है।

" बहुत फेर पड़े किरपन को अब कुछ कृपा कीजौ।
हो दयाल दष देह अपना ऐसी बखश करीजै॥"

बाबा जी हर रोज शाम को रहिरास साहिब करते। उसके उपरान्त गुरु नानक देव जी महाराज की महिमा सुनीता थे अपने स्थान पर। बहुत सी संगत में एक ऐसा परिवार था कि जिन्होंने इतनी उम्र हो गई कि कभी नाम नहीं जपा था। बाबाजी सब जानते थे कि इनका आगे का समय बहुत ही दुःख दायक आने वाला है बाबा जी हमेशा उन्हें कहते थे की भाई नाम जपा करो। गुरु घर जाया करो पर वह बाबाजी का इशारा नहीं समझ पा रहे थे। बाबाजी अपने पास बुलाया और कहा कि भाई गोवरधन दास जी आप सुबह तैयार हो जाना हम तुम्हे सुबह गुरूद्वारे लेकर जायेंगे। बाबाजी हर रोज सुबह चार बजे गोवरधन दास को अपने साथ नानक प्याऊ जो कि दिल्ली में गुरु नानक देव जी का ऐतिहासिक गुरुद्वारा है वहा पर लेकर जाने लगे। तीन महीने लगातार लेकर जाते रहे। एक दिन गोवरधन दास जी के परिवार वाले उनको पकड़ कर बाबाजी के स्थान पर लेकर आये और कहने लगे कि बाबा जी इनको लकवा मार गया है, सूझ-भुझ भी चली गयी है, न किसी को पहचानते है और न ही पूरी बात कर पाते है। यह आपके पास आने का इशारा कर रहे थे। अब आप ही कुछ कृपा करो। बाबा जी ने उनकी हालत देखी और खड़े होकर गुरु नानक देव जी के चरणों में अरदास की हे! पिता परमेश्वर इन पर कृपा करो। बाबाजी ने उनके परिवार को बोला कि इनको दो दिन के लिए हमारे पास छोड़ जाओ और वाहेगुरु जी सब ठीक करेंगे। दो दिन उनकी आप सेव करते रहे और उनको ठीक करके घर भेजा। उस परिवार को गुरुनानक देव जी महाराज जी के चरणों से इतना प्यार हो गया कि वह रोज़ गुरु घर जाने लग गये।

"जे संतन हरि के मीत
केवल नाम जाकि नीतगविऐ ।"

बाबा जी हमेशा सबको गुरु घर जाने की प्रेरणा देते है। कोतक तो अनेक है पर मै वही आपको बताना चाहता हू जो मैने अपनी आँखों से देखे है। एक महिला जिसका नाम मोनिका आलूवालिया है, वह दिल्ली के पशचिम विहार में रहती है। हाथ जोड़कर कहने लगी कि बाबा जी मेरा एक लड़का और एक लड़की है पर बिमारी के कारण मेरा लड़का मर गया है आप कहते हो कि गुरु नानक देव जी के घर से सब मिलता है मुझे भी एक पुत्र की दात लेकर दो। बाबाजी ध्यान लगाकर बैठे थे वह बोले की बेटा आपकी उम्र कितनी है। वह हाथ जोड़कर बोली बाबा जी 45 साल की हु फिर बाबा जी बोले बेटा अगर गुरु दात दे दे तो कल को लोगो की बातों में आकर आप यह सोचों की इस उम्र में मै गलत फैसला ले चुकी हु। दुनिया का सामना करने में मुझे शर्म आ रही है। इसलिए कल सोच कर आना । अगले दिन वह बोली बाबा जी मुझे दुनिया की परवाह नहीं मुझे बेटे की दात की जरूरत है। आप गुरु नानक देव जी के चरणों में अरदास लगा दो।

संगत के सामने बाबा जी ने खड़े होकर गुरु नानक देव जी के चरणों में अरदास की और कहा की गुरुद्वारा बंगला साहिब से जल लाकर 40 दिन दोनों पति-पत्नी पियो वाहेगुरु जी कृपा करेंगे ऐसा ही हुआ वह उम्मीद से हो गयी फिर बाबा जी ने कहा बेटा एक बार डॉक्टर को भी दिखा लो और डॉक्टर ने भी पक्का कर दिया। बाबा जी ने वचन करा कि बच्चा सेहतमंद और नार्मल होगा। बस वाहेगुरु पर भरोसा रखो। एक दिन फ़ोन आया कि बाबा जी बच्चा हो गया है वह भी लड़का पर डॉक्टर कहते है कि वह नहीं बचेगा। यह सुनकर बाबा जी बड़े हैरान हुए और गुरु नानक देव जी के चरणों में हाथ जोड़कर विनती की हे! प्रभु यह क्या खेल रचाया। उसके बाद आँखे बंद करके ध्यान लगाया कुछ समय बाद मुझे बोले कि जाओ उनके घर वालो को कहो कि आकर मुझे अपने घर लेकर जाये।

अगले दिन उनका भाई बाबा जी को घर लेकर गये। बाबा जी उनके घर पहुँचे और बोले की जिस परमात्मा ने दात दी थी , उस पर भरोसा नहीं था। तुमने आर्टिफीसियल दर्द लगवाकर बच्चा समय से पहले पैदा करवाया इस बच्चे ने 9 घंटे बाद जन्म लेना था। फिर बाबा जी बोले परेशान न हो 9 दिन बाद बच्चा ठीक-ठाक घर आ जायेगा। हुआ भी ऐसा ही बच्चा 9 दिन बाद ठीक -ठाक घर आ गया।

बाबा इन्द्रजीत सिंह जी जिन्होंने वाहेगुरु जी के हुकुम अनुसार दुनिया के भले के लिए भटके लोगो को सही मार्ग पर लाने के लिए दु:ख दर्द निवारण मिशन की स्थापना की दुःख दर्द निवारण मिशन की स्थापना केवल एक दिन में नहीं अथवा कुछ दिनों में नहीं बल्कि बाबा जी के अनेक अरदासे गुरु घर की सेवा का परिणाम है। वह हर एक को गुरु नानक देव जी की महिमा बताना चाहते है। जो उन्होंने पाया वह सभ पा ले। सब पिता परमेश्वर को प्यार करे वाहेगुरु जी आप पर भी कृपा करे और फिर आपको जन्म मरण के घेरे में न आना पड़े।

"गुरुमुख होते सु हुक्म पहचाने
मानै हुक्म सहाईदा ॥ "

"वाहेगुरु जी का खालसा
वाहेगुरु जी की फ़तेह " ॥

The remembrance of God - Naam marg is the essence of Sikhism. . . .